अद्यतन समाचार
न्यायालय के बारे में
प्रारंभ में न्याय वितरण की कोई समुचित व्यवस्था नहीं थी। 1871 में पहली बार राजधानी में सिविल, क्रिमिनल और रेवेन्यू की तीन अदालतें स्थापित की गईं। इसके बाद वर्ष 1884-85 में वहाँ की अदालतों को समाप्त कर दिया गया और अलग निज़ामतों की स्थापना की गई। उनके फैसलों के खिलाफ अपील की सुनवाई राज सभा और बाद में इजलास-खास द्वारा की गई।
स्वर्गीय महामहिम श्री गंगा सिंह के अल्पसंख्यक होने के दौरान एक रीजेंसी काउंसिल थी जो निजामतों के फैसलों के खिलाफ अपील सुनती थी। वर्ष 1887 में एक अपीलीय न्यायालय (मुख्य न्यायालय) की स्थापना की गई थी।
तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों को छोटे मामलों को सुनने और तय करने का अधिकार दिया गया था। नायब तहसीलदार के पास तृतीय श्रेणी मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ थीं और तहसीलदार के पास द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ थीं। नाज़िम के पास प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ थीं। जहां मुंसिफ या जिला न्यायाधीश नहीं था, वहां नायब तहसीलदार 50/-और तहसीलदार 200/- रु.के पास रुपये तक के सिविल मामलों की सुनवाई का अधिकार क्षेत्र था।
बीकानेर, चुरू और नोहर में मानद मजिस्ट्रेट थे। बीकानेर, रतनगढ़, भादरा, चूरू और गंगानगर में मुंसिफ न्यायालय स्थापित किए गए थे। मुंसिफ के पास द्वितीय[...]
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